बड़ी सोच!?

सुबह से करीम बारह कारें साफ कर चुका था। यह तेहरवीं गाड़ी थी। हाथ में कपडा लिए, वह डर-डर कर उस चमचमाती लाल फेरारी कार की तरफ बढ़ा और फिर ठिठका और रुक ही गया। वह नोएडा सेक्टर-18 के रेडिसन ब्लू होटल के सामने पार्क की गयी गाड़ियों पर कपड़ा मार कर दो पैसे कमा लेता था। प्रायः महंगी कारों की सफाई करने से ज्यादा पैसे मिल जाया करते थे। उसके मन में पनपते डर का एक कारण था। पिछले हफ्ते ही एक कार मालिक ने उसकी पिटाई कर दी थी। उसका का गुनाह था––कार के मालिक से बिना पूछे गाड़ी को हाथ लगाना। ग्यारह साल के करीम को दो चांटों के लगने से होने वाली शारीरिक पीड़ा का आभास तक नहीं हुआ था परन्तु अपने साथ हुई बदसलूकी से लगी चोट का दर्द वह भुला नहीं पाया था।

उसने उस फेरारी जितनी आलिशान कार पहले कभी नहीं देखी थी। चुम्बकीय आकर्षण था उस कार में; वह उस के नज़दीक जाकर उसे निहारने लगा। उसका लाल रंग, उसके बम्पर, उसके सामने की जाली, उसकी लाइटें, उसका डैशबोर्ड, उसकी साफ-सुथरी सीटें… एक दम नई थी वह कार। अभी तो उसकी सारी सीटों के पॉलिथीन के कवर भी नहीं उतरे थे और बोनट पर सिन्दूर से बना स्वस्तिक का निशान बिलकुल ताज़ा लग रहा था। स्टीयरिंग पर बंधी माता रानी की चमकवाली लाल चुन्नी, और साइलेंसर पर बंधा काले रंग के धागे का लच्छा कार के मालिक की देवी माता में आस्था को दर्शा रहा था। 

करीम अपने आप को रोक नहीं पाया था; ताका-झांकी कर रहा था। अपने चार दिन पुराने अनुभव को भूल सा गया था। तभी उसने लम्बे कदम भरते एक छः फुटे नौजवान को अपनी तरफ आते देखा। वह मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था। करीम सहम सा गया। पल भर में उसे फिर से चार दिन पहले मर्सिडीज़ के मालिक से पड़े झापड़ याद आ गए।

“ओके अनु… तो फिर आज शाम हम गोल्डन ड्रैगन जा रहे हैं। मैं तुम्हें छः बजे घर से पिक अप करूंगा। वी विल गो फॉर अ लॉन्ग ड्राइव बिफोर डिनर,…  बाय बाय! लव यू।” कहते हुए युवक ने मोबाइल बंद किया और करीम पर प्रश्न भरी निगाहें डालीं। करीम ने कार को हाथ नहीं लगाया था फिर भी वह डर-सहम सा गया।

अगर नज़रें क़त्ल कर सकतीं तो युवक की नज़रों से करीम की मौत संभावित थी।

“स स स ररर, कार साफ कर दूँ?” करीम हाथ जोड़ कर मिमियाने लगा। “अच्छे से चमका दूंगा। यह देखिये, यहाँ पर धूल बैठ गयी है।”

युवक को सोचता हुआ देख कर करीम ने थोड़ा साहस जुटाया और आगे बोला, “सर, सिर्फ पाँच मिनट लूँगा।” छोटी सी उम्र में करीम ने यह जान लिया था की बड़े लोगों को अच्छा लगता है जब कोई उनके समय की कद्र करे। युवक को ऐसा लगा जैसे कि करीम ने उसे कुछ और फोन कॉल्स करने का मौका दे दिया हो। उसने सिर हिला कर करीम को कार साफ करने की अनुमति दे दी और फिर से मोबाइल पर एक नंबर डायल करने लगा।

“हैलो, मैं अमित कालरा बोल रहा हूँ… यस, यस, मैंने ही कॉल किया था।  जी हाँ, टेबल फॉर टू… कैंडल लाइट… ओके, कनफर्म्ड।”

अमित कालरा कॉल किये जा रहा था। उन कॉल्स के दौरान उसकी नज़र करीम पर टिकी थी।

करीम बड़ी तन्मयता से कार साफ कर रहा था। कपड़े से पोंछ कर वह अलग-अलग कोण से कार को देख कर तस्सली कर रहा था कि चमक में कहीं कमी न रह जाय। करीम की मेहनत से युवक प्रभावित था। करीम के फटे कपडे देख कर उसे बच्चे पर दया भी आने लगी थी। मन ही मन उसे अच्छी टिप देने का निश्चय कर लिया था अमित ने।

“हेलो भैया, व्हाट अ फैबुलस कार? इट रिएली फ्लाईज़… सुपर्ब… आई एम एंजोयिंग ड्राइविंग इट। तुसि ग्रेट हो। आई लव यू, बिग ब्रदर।” अमित ने एक और कॉल किया।

अमित कालरा आज खुश था। और क्यों न होता? उस के मन में अपनी नई फेरारी में पहली बार अनु को सैर कराने की उमंग जो थी। पर वह असमंजस में भी था, “यमुना एक्सप्रेसवे पर जाना ठीक होगा या डीएनडी पर सैर का आनंद आएगा? आज डिनर के वक्त हिम्मत कर के अनु को प्रोपोज़ कर ही दूंगा। उसे फूल कम पसंद हैं, डार्क चॉकलेट्स ठीक रहेगीं…।”

मई की गर्मी में भी अमित कालरा वसंत ऋतु में खिले फूलों की ताज़गी को महसूस कर रहा था।

न जाने कैसे पंद्रह मिनट बीत गए। मन में चल रहे अनेक संवादों में अमित कुछ इस तरह खो गया था कि समय का पता ही नहीं चला। जब विचारों के भंवर से अमित उबरा तो अपने सामने करीम को पाया। अमित उस गरीब की मुस्कुराहट के पीछे छुपी गम्भीरता को महसूस कर रहा था। अमित ने पर्स खोल कर करीम के हाथ में एक पांच सौ रुपये का नया नोट रख दिया।

निस्संदेह आज कुछ खास बात थी; अमित के मन में उदारता उमड़ रही थी। उम्मीद से बहुत अधिक पैसे पाकर करीम की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा। उसका चेहरा अब एक खुली किताब था जिसे अमित आसानी से पढ़ सकता था। “सर, ये तो मेरे तीन दिन से ज्यादा की कमाई हो गयी,” करीम ख़ुशी से पगला सा गया ।

“क्या करोगे इन पैसों का,” अमित ने वैसे ही गाड़ी में बैठते हुए मुस्कुराते हुए पूछ लिया। करीम के उत्तर में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।

“सर, सीधा घर जाऊँगा। अगले कुछ दिन गाड़ियाँ साफ नहीं करूंगा। पढाई करुँगा। अगले हफ्ते परीक्षा है। इन पैसों से घर का काम चल जाएगा।” करीम की बातें सुन कर अमित के मन में अचानक उत्सुकता और दया के भावों की छोटी सी सुनामी आ गयी।

“कहाँ रहते हो?”

“सर, पास ही में; सेक्टर-52 में जो फ्लाईओवर बन रहा है उसके पास की झुग्गिओं में मेरा घर है। अम्मी वहीँ साइट पर काम करती हैं।”

“कालरा कंस्ट्रक्शंस की साइट पर?”

“सर नाम तो नहीं मालूम पर हमारे मालिक ऐसी ही लाल गाड़ी में कभी-कभी आते हैं। ताड़ जैसे ऊँचे हैं, बिलकुल आप जैसे दिखते हैं।”

अमित कालरा के चेहरे पर मुस्कराहट का आना स्वाभाविक था––कालरा कंस्ट्रक्शंस उसके पिता की कंपनी थी जिसे उसका भाई सुमित चलाता था। अमित ने अभी-अभी एमिटी यूनिवर्सिटी से एम बी ए पास किया था। सी.जी.पी.ए.  बहुत कम था––डिग्री तो नाम के लिए चाहिए थी, आगे चल कर तो घर का बिज़नेस ही संभालना था। घर पर सभी बहुत खुश थे।

“आओ में तुम्हें वहाँ छोड़ दूँगा। मैं उधर ही जा रहा हूँ,” अमित के मन में उदारता और दया भाव ने एक और हिलकोरा लिया। उसने मुस्कुराते हुए करीम को कार में बैठने का इशारा किया। अमित सोच रहा था कि उस गरीब की जिंदगी का वह एक बड़ी यादगार वाला दिन होगा। अमित को ख़ुशी थी कि वह उस बच्चे को एक खास ख़ुशी देने जा रहा था। उसे, खुद को होने वाली अनुभूति में कहीं––थोड़ा सा सही––घमंड घुला हुआ था।

करीम सकपकाया। वह सपने में भी ऐसी कार में बैठने की बात नहीं सोच सकता था। वह कार के खुले दरवाजे की ओर बढ़ा और रुक गया। फिर जल्दी से उसने अपनी टूटी चप्पलें––जिनकी सेफ्टी पिन से मरम्मत की गयी थी––उतारी और उनको थपथपा कर उनकी धूल को निकलाकर उन्हें साफ किया। फिर जल्दी से जेब से एक गन्दा सा कपड़ा निकाला और उसे कार की पॉलिथीन से कवर की गयी सीट पर बिछा दिया––”सर, रुमाल फैला देता हूँ, सीट गन्दी नहीं होगी।”

करीम की ख़ुशी का ठिकाना न था।

करीम की ख़ुशी में अमित आनंदित हो रहा था। सेक्टर-18 के गुरूद्वारे के सामने से निकलते हुए अमित के मन में न जाने क्या बात आयी कि सीधे सेक्टर-52 की तरफ जाने के बजाय उसने जी.आई.पी. के सामने यू-टर्न ले लिया और फिल्म सिटी की ओर चल पड़ा। वह चाहता था कि करीम को थोड़ी लम्बी सैर कराए।

खुश लेकिन सहमा सा, करीम कभी कार में तो कभी बाहर देख रहा था। कार के स्टीरियो पर बजते गाने की आवाज़ कम करते हुए अमित ने बोलना शुरू किया, “कैसा लग रहा है?”

“बहुत अच्छा,” पुलकित करीम चहचहाया।  

“जानते हो, मुझे यह कार मेरे भाई ने मेरे बर्थडे पर गिफ्ट में दी है?”

“अच्छा!?” करीम की आँखों में प्रश्न और विस्मय से भरी प्रशंसा थी।

“वे तो मुझे रेंजरोवर देना चाहते थे पर मैं फेरारी के लिए अड़ गया,” अमित खिलखिलाया और फिर जोर देकर बोला, “… … सोच बड़ी होनी चाहिए।”

ये बातें करीम की समझ से बाहर थीं। फिर भी वह जवाब में आँखें बड़ी कर के सिर हिला रहा था।

“और घूमना है?”

“नहीं सर, बस अब मुझे उतार दें।”

“कोई बात नहीं, मैं तुम्हें साइट पर छोड़ दूँगा।”

महामाया फ्लाईओवर की ओर से एक लम्बा चक्कर लगाते हुए अमित ने कार को सेक्टर-52 की झुग्गिओं के सामने ला कर रोक दिया और करीम की और देख कर एक बार फिर मुस्कुराया, “परीक्षा के लिए बेस्ट ऑफ़ लक।”

“थैंक यू, सर,” करीम ने कार का दरवाज़ा खोलने की कोशिश करते हुए कहा। उससे दरवाजा न खुलते देख अमित ने मदद की। कार से उतरते-उतरते करीम रुक गया और अमित की ओर देख कर विनती की, “सर, प्लीज एक मिनट रुक जायें, मैं अभी लौट कर आता हूँ।”

करीम की मेहनत और लगन पर फिदा अमित ने हामीं भर दी और अपना मोबाइल उठा लिया और व्हाट्सएप मैसेजेस देखने लगा।

दो ही मिनट में करीम वापस आ गया। उसकी गोद में एक छोटा सा बच्चा था जिसे वह बड़ी मुश्किल से उठा पा रहा था। कार के पास आकर वह अमित से बोला, “सर, ये मेरा भाई आरिफ है।” फिर आरिफ को ऊँगली से दिखा कर बोला, “आरिफ, पता है, आज इन साब ने मुझे इस मोटर में बिठा कर घुमाया है। ये इनके बड़े भाई ने इनको तोहफे में दी है। एक दिन मैं भी तुझे ऐसी ही गाड़ी तोहफे में दूँगा।”

अमित ने एक मिनट बाद कार आगे बढ़ा दी। फिर देर तक कार के रियर व्यू मिरर में दोनों बच्चों को खिलखिला कर टा-टा करते देखता रहा।

“सोच बड़ी होनी चाहिए।” अमित की अपनी ही आवाज़ उसके कानो में गूँज रही थी।

16 thoughts on “बड़ी सोच!?

  1. Excellent story. Your writing skills and imagination are very good. Waiting to see short films which are expected to be made on them.

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  2. Now I’m feeling emotional….My बड़ा भाई paid all my college, coaching fees ,my expenses…now ..I’m studying mbbs ,will be doctor soon….just because of him

    U r right सोच बड़ी होनी चाहिए ❤❤❤❤❤thanks so much for writing this Dada❤😊😊

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      1. I will give my best to become good person ,good doctor….thanks so much for ur wishes ❤❤ humbled 😊😊 Dada

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