पढ़ाई का दबाव और एक पिता-पुत्र की समझ

वर्ष और दिनांक तो याद नहीं, लेकिन हाँ, वह अप्रैल की तपती दुपहरी थी। मैंने तीन व्यक्तियों को उस भीषण गर्मी में सुब्रतो पार्क में चलते देखा, तो कार में बिठा लिया। थोड़े संकोच के साथ उन्होंने लिफ़्ट को स्वीकारा था। कार में बैठते ही उन में से एक ने कहा, “धन्यवाद भाई साहब, मैं रवीन्द्र शर्मा हूँ, यह मेरा भाई, नवीन है; और यह मेरा बेटा अजय है (नाम परिवर्तित है)।”

“ मैं ग्रुप कैप्टन अशोक चोर्डिया हूँ…।” अपना परिचय देने के साथ ही मैंने उनसे उनके गन्तव्य की जानकारी माँगी।

“आप हमें किसी ऐसे बस स्टॉप पर उतार दें, जहॉं से हमें निज़ामुद्दीन स्टेशन की बस मिल सके; ट्रेन पकड़नी है।” वह बोला।

“स्टेशन मेरे रास्ते में ही है। मैं आप लोगों को वहीं छोड़ दूँगा।”

“ आपकी बड़ी कृपा होगी भाई साहब।”

एक लंबी चुप्पी…

वे तीनों यों गुमसुम थे मानो असमंजस में हों कि क्या बात करें? मेरा अनुभव है कि सीधे-सादे लोग अजनबियों के सामने, और विशेषकर वर्दीधारियों के सामने, मितभाषी और अंतर्मुखी हो जाया करते हैं। मुझे इनर रिंग रोड पर लंबी दूरी तय करनी थी, और इसमें आधे घंटे से अधिक समय लगना था। गाड़ी में चार लोगों का इतनी देर चुपचाप बैठे रहना सचमुच कष्टप्रद हो जाता, अतः मैंने ही पहल की–“आप लोग दिल्ली के रहने वाले तो नहीं लगते हैं?”

“जी हम लोग कोटा से आए हैं; अजय की काउंसलिंग के लिए…”

“अच्छा!? तो कैसी रही काउंसलिंग? अजय क्या करना चाहता है?”

“काउंसलिंग तो ठीक-ठाक रही… परन्तु, मैं इसके बोर्ड की परीक्षा के नतीजों से दुखी हूँ।” पिता ने संजीदगी से उद्गार व्यक्त किया।

“क्यों? क्या हुआ?”

“इसको 94% अंक मिले हैं। पढ़ने तो यह बैठता ही नहीं है। यदि यह लगकर पढ़ाई करता तो कहीं ज़्यादा अंक ला पाता। इंजीनियरिंग करना चाहता है। आप ही इसे समझाइए।”

पढाई! पढाई! पढाई!

मैं हैरान था। इतने अंक पाकर तो कोई भी लोगों की ईर्ष्या का पात्र बन सकता है, और एकपिता श्री हैं जो गमगीन हैं। और चाहते हैं कि एक अजनबी उनका मार्गदर्शन करे। मुझे वह लड़का अत्यंत ही मेधावी प्रतीत हुआ; भला मैं उसको क्या सलाह देता लेकिन मैं उसके पिता को भी निराश नहीं करना चाहता था। मैंने वार्तालाप जारी रखा। जल्दी ही मैं समझ गया कि लड़का अत्यंत प्रखर था और तथ्यों को तुरंत समझ लेता था। इसलिए उसका पढ़ाई-लिखाई संबंधी कार्य अन्य छात्रों की तुलना में जल्दी समाप्त हो जाता था। एक ही बात को दोहराने में वह बोर हो जाता था और इसी वजह से पिताजी की आलोचना क्या केंद्र बन गया था। गहराई से विचार करने के बाद उसे देने लायक एक सलाह मेरे मस्तिष्क में कौंधीं। मैंने उससे कहा कि यदि वह अलग-अलग पुस्तकों से पढ़ेगा तो, तथ्यों को गहराई से समझ सकेगा। अलग-अलग पुस्तकों के प्रश्न, तथा गणितीय सवाल हल करने में आनन्द आएगा व नींव भी मज़बूत होगी। इसके उपरांत बचे समय का उपयोग अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। अभिव्यक्ति की सामर्थ्य व्यक्ति को बहुत ऊँचाई तक ले जा सकती है, भले ही वह किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो। तीनों व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहे थे।

“अंकल मैं ऐसा ही करूँगा।”

“बहुत ख़ूब! बेटा, आप में और बहुत कुछ कर सकने की सामर्थ्य है। आपको इसका उपयोग अपने ज्ञान के आधार को मज़बूत बनाने में, और अभिव्यक्ति की क्षमता को बेहतर बनाने में करना चाहिए।”

उस वार्तालाप से पिताश्री गदगद थे। निज़ामुद्दीन स्टेशन पर उतरने के बाद उनको (पिताजी को) अलग ले जाकर मैंने सलाह दी कि बच्चे को पढ़ाई के मामले में स्वतन्त्र छोड़ दें। ऐसा करने से नतीजे कई गुना बेहतर होगें। मैंने उस प्रकरण को वहीं समाप्त समझ लिया था।

लेकिन नहीं…

एक माह बाद रवीन्द्र का फ़ोन आया। “भाई साहब आपने तो बच्चे पर जादू ही कर दिया। वह बिलकुल बदल गया है। इस परिवर्तन के लिए मैं आपका आभारी हूँ।”

“ये तो बड़ी अच्छी बात है। उम्मीद करता हूँ कि वह इसी तरह प्रगति करता रहेगा। उसे मेरा शुभाशीष कहिएगा।” उस दिन कुछ इसी तरह की बातें हुईं।

मेरी सोच के विपरीत यहाँ भी मामले की इतिश्री नहीं हुई।

कुछ महीनों बाद फिर से रवींद्र का फ़ोन आया। “भाई साहब, मुझे आपकी सलाह की अत्यंत आवश्यकता है। अजय एक साल ड्राप लेकर आई आई टी (IIT) की तैयारी करना चाहता है। यदि वह सफल न हुआ तो व्यर्थ ही साल बर्बाद हो जाएगा। हम क्या करें? रवींद्र की इस माँग से मैं उलझन में पड़ गया। उसके स्वर की बैचेनी बता रही थी कि वह बहुत चिंतित था। मैं कुछ पल सोचता रहा। वे पल युगों की तरह थे। मैं शिद्दत से महसूस कर रहा था कि, उसको मेरी सलाह पर बड़ा भरोसा था और इसी आशा से वह मुझ से सलाह माँग रहा था। उसकी माँग को ठुकराना मेरे वश में नहीं था। लेकिन मैं उसे क्या सलाह दे सकता था? कुछ पल हम लोग इधर उधर की बातें करते रहे। इस बीच मैंने अपने विचार संगठित किए। फिर मैं बोला, “रवींद्र यदि हम नियम से रहते हैं तो 75-80 वर्ष जी सकते हैं। एक वर्ष तो इस जीवन का छोटा सा अंश है। यह महत्त्वहीन है। यदि ड्रॉप लेने की अनुमति अजय को मिल जाएगी तो वह सफल होने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देगा। और पूरी संभावना है कि वह सफल होगा। फिर हमें कितनी ख़ुशी होगी। और मान लो वह नहीं कर पाया तो उसे स्वयंकी क्षमता का अनुमान हो जाएगा। और एक साल में वह जो मेहनत करेगा, वह व्यर्थ नहीं जाएगी। वह उसकी कॉलेज की पढ़ाई में सहायक होगी ही। अंत में मैं तो यही कहूंगा कि उसे ब्रेक ले लेने दो, और परिणाम की चिंता किए बिना उसके साथ पूर्ण सहयोग करो। इससे वह पढ़ाई तो अच्छी करेगा ही–आपके और नज़दीक आ जाएगा; आपको और ज़्यादा प्यार करेगा और आपका अधिक आदर भी करेगा। मैं महसूस करता हूँ कि वह आपके हार्दिक सहयोग का अधिकारी है।”

रवीन्द्र ने मुझे हृदय से धन्यवाद दिया। अगले कुछ माह तक मैं उत्सुकता से रवींद्र के फ़ोन की प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन व्यर्थ। समय बीतते मैं उन बातों को भूलने सा लगा था। तभी फिर एक दिन रवींद्र का फ़ोन आया। ”आप कैसे हैं? यहाँ पर सब कुशल-मंगल है। अजय अच्छा चल रहा है। जल्दी ही वह इंजीनियर बन जाएगा। मेरे साथ वह भी आपकी अमूल्य सलाह के लिए धन्यवाद दे रहा है; प्रणाम कर रहा है।”

“बड़ा शुभ समाचार है। ब्रेक लिया था क्या? क्या उसे आई आई टी (IIT) में प्रवेश मिला?” मेरी उत्सुकता अदम्य थी।

“भाई साहब मैंने उसे स्वतंत्र छोड़ दिया था। उस से कहा कि ब्रेक लेकर मनोयोग से आई आई टी (IIT) प्रवेश परीक्षा की तैयारी करे। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसे अपनी पसंद का कॉलेज मिल गया और ब्रांच भी। मैं आपको उसकी प्रगति से अवगत कराता रहूगॉं।”

रवीन्द्र समय समय पर अपनी छोटी मोटी खुशियाँ मेरे साथ साझा करता रहता है।

(यह पोस्ट मेरे अंग्रेजी पोस्ट “Question of a Sabbatical” का हिंदी रूपान्तर है, जिसके लिए मैं अपनी प्रिय बहन प्रोफेसर रीता जैन का आभारी हूँ।)

21 thoughts on “पढ़ाई का दबाव और एक पिता-पुत्र की समझ

  1. Respected Ritujain ji,
    Me hi vo shaksh hu aur respected captain shb ka hridya se jivan bahr abhar rhunga.Unki Salah se hi Ja mere son TUSHAR ne MNIMS Mumbai se MBATech Mechanical me Final Sam kabexam de that he…AJ bahut bdi Khushi me apse v respected captain sahb se share kat that hu jiska samachar muze Abhi Mila he ki Tushar selected in campus placement on good package..as Management Trainee in ATUL LTD.Valsad ,Gujarat…AJ bhi hm is Yug Purush Respected Captain Ashok Chordia sir ka Dil se abhar vyakt krte he..evm sada unke pad chinho pr chalne ka Pran krte he unke CHIRAYU hone ki ishawr se prarthana karte he
    …Apko v sabhi pathko Ko Mera Sadar pranam… Regards Ravi Vaishnav

    Like

  2. Me hi vo shaksh hu aur respected captain shb ka hridya se jivan bahr abhari rhunga.Unki Salah se hi aj mere son TUSHAR ne MNIMS Mumbai se MBATech Mechanical me Final Sam ka exam de rha he…AJ bahut bdi Khushi me apse v respected captain sahb se share kar that hu jiska samachar muze Abhi Mila he ki Tushar selected in campus placement on good package..as Management Trainee in ATUL LTD.Valsad ,Gujarat…AJ bhi hm is Yug Purush Respected Captain Ashok Chordia sir ka Dil se abhar vyakt krte he..evm sada unke pad chinho pr chalne ka Pran krte he unke CHIRAYU hone ki ishawr se prarthana karte he
    …Apko v sabhi pathko Ko Mera Sadar pranam… Regards Ravi Vaishnav

    Like

  3. You are an inspiration…Your thoughts are motivational…Your are true soldier by heart by deeds and now by pen too. We are blessed that we are around you. A Grand Salute With Sadar Charan Sparsh.
    🙏🙏🙏🙏🙏

    Like

  4. आदरणीय रितु जैन जी।
    दिल्ली जैसे शहर में ककिसी अनजान को लिफ्ट दे यह महान कार्य सिर्फ कैप्टन अशोक चोरडिय़ा साहब ही कर सकते है।आज इतना खोप ह की लोग किसी की मदद नही करते।हमें भी ईसकी उम्मीद नहीं थी।सर् ने जो कहा व किया वो कोई फरिस्ता ही कर सकता हैं।आज भी उचित शब्द नहीं है जिससे में अपनी भावनाओं को प्रदर्शित कर सकु।आज मेरा पुत्र को जो भी कुछ है वो केवल कैप्टन साहब का आशिर्वाद है।वैष्णव फैमिली सदा इनकी अभारी रहेगी।जो मदद सर् ने की हम भी उसका अनुसरण करते है और जीवन मे कभी भी किसी की मदद का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे।ईश्वर कैप्टन साहब को स्वस्थ रखें एवं उनका आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो।हार्दिक शुभकामनाएं एवं आभार।रवि तुषार वैष्णव।इस लेख का वास्तविक पात्र।

    Like

    1. प्रिय श्री रवि जी,
      इस पोस्ट के माध्यम से मैं, पिता-पुत्र रिश्ते कैसे होने चाहिए, पर प्रकाश डालना चाहता था। मैं चाहता था कि वे पिता जो अपने बच्चों को समझना चाहते हैं, इस एपिसोड से सीख लें। पोस्ट पर आप के कॉमेंट थोड़े अतिशयोक्तिपूर्ण लगे। आपने मुझे ही नायक बना दिया। 🙏 सत्य यह है कि बच्चे ने मेहनत की और आपने सहृदय सपोर्ट किया। भगवान की कृपा से हम मिले और मैं ज़रिया बना।
      🙏😊🙏

      Like

  5. Well said, sir !
    A dilemma students and parents are going every May- July !
    Free hand does help and brings about the best in kids..
    🙏🏻

    Like

Leave a comment